- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- 11
- 12
- 13
- 14
- 15
- 16
- 17
- 18
- 19
- 20
- 21
- 22
- 23
- 24
- 25
- 26
- 27
- 28
- 29
- 30
- 31
- 32
- 33
- 34
- 35
- 36
- 37
- 38
- 39
- 40
- 41
- 42
- 43
- 44
- 45
- 46
- 47
- 48
- 49
- 50
- 51
- 52
- 53
- 54
- 55
- 56
- 57
- 58
- 59
- 60
- 61
- 62
- 63
- 64
- 65
- 66
- 67
- 68
- 69
- 70
- 71
- 72
- 73
- 74
- 75
- 76
- 77
- 78
- 79
- 80
- 81
- 82
- 83
- 84
- 85
- 86
- 87
- 88
- 89
- 90
- 91
- 92
- 93
- 94
- 95
- 96
- 97
- 98
- 99
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
Psalms - Chapter 115
1) प्रभु! तू प्रेममय और सत्यप्रतिज्ञ है। हम को नहीं, हम को नहीं, बल्कि अपना नाम महिमान्वित कर।
2) अन्य राष्ट्र क्यों कहते हैं: "कहाँ है उनका ईश्वर?"
3) हमारा ईश्वर स्वर्ग में है। वह जो चाहता है, वही करता है।
4) उन लोगों की देवमूर्तियाँ चाँदी और सोने की हैं; वे मनुष्यों द्वारा बनायी गयी हैं।
5) उनके मुख हैं, किन्तु वे नहीं बोलतीं; आँखें है, किन्तु वे नहीं देखतीं।
6) उनके कान हैं, किन्तु वे नहीं सुनतीं; नाक हैं, किन्तु वे नहीं सूंघतीं।
7) उनके हाथ हैं, किन्तु वे नहीं छूतीं; पैर हैं, किन्तु वे नहीं चलतीं। उनके कण्ठ से एक भी शब्द नहीं निकलता।
8) जो उन्हें बनाते हैं, वे उनके सदृश बने और वे सब भी, जो उन पर भरोसा रखते हैं।
9) इस्राएल के पुत्रों! प्रभु का भरोसा करो, वही उनकी सहायता और ढाल है।
10) हारून की सन्तति! प्रभु का भरोसा करो। वही उनकी सहायता और ढाल है।
11) प्रभु के श्रद्धालु भक्तों! प्रभु का भरोसा करो। वही उनकी सहायता और ढाल है।
12) प्रभु हम को याद करता है; वह हमें आशीर्वाद प्रदान करेगा। वह इस्राएल के घराने को आशीर्वाद प्रदान करेगा; वह हारून के घराने को आशीर्वाद प्रदान करेगा;
13) वह प्रभु के श्रद्धालु भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करेगा; चाहे वे बड़े हों या छोटे।
14) जिसने पृथ्वी और स्वर्ग बनाया है, वही प्रभु तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करे।
15) प्रभु तुम को और तुम्हारी सन्तति को सम्पन्नता और उन्नति प्रदान करे।
16) स्वर्ग, प्रभु का स्वर्ग है; किन्तु उसने पृथ्वी मनुष्य को प्रदान की है।
17) मृतक प्रभु की स्तुति नहीं करते; वे सब अधोलोक जाते हैं।
18) किन्तु हम अभी और अनन्त काल तक प्रभु को धन्य कहते हैं।