- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- 11
- 12
- 13
- 14
- 15
- 16
- 17
- 18
- 19
- 20
- 21
- 22
- 23
- 24
- 25
- 26
- 27
- 28
- 29
- 30
- 31
- 32
- 33
- 34
- 35
- 36
- 37
- 38
- 39
- 40
- 41
- 42
- 43
- 44
- 45
- 46
- 47
- 48
- 49
- 50
- 51
- 52
- 53
- 54
- 55
- 56
- 57
- 58
- 59
- 60
- 61
- 62
- 63
- 64
- 65
- 66
- 67
- 68
- 69
- 70
- 71
- 72
- 73
- 74
- 75
- 76
- 77
- 78
- 79
- 80
- 81
- 82
- 83
- 84
- 85
- 86
- 87
- 88
- 89
- 90
- 91
- 92
- 93
- 94
- 95
- 96
- 97
- 98
- 99
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
Psalms - Chapter 33
1) धर्मियों! प्रभु में आनन्द मनाओ! स्तुतिगान करना भक्तों के लिए उचित है।
2) वीणा बजाते हुए प्रभु का धन्यवाद करो, सारंगी पर उसका स्तुतिगान करो।
3) उसके आदर में नया गीत गाओ, मन लगा कर वाद्य बजाओ।
4) प्रभु का वचन सच्चा है, उसके समस्त कार्य विश्वसनीय हैं।
5) प्रभु को धार्मिकता और न्याय प्रिय हैं; पृथ्वी उसकी सत्यप्रतिज्ञता से परिपूर्ण है।
6) उसके शब्द मात्र से आकाश बना है, उसके श्वास मात्र से समस्त तारागण।
7) वह समुद्र का जल बाँध से घेरता और महासागर को भण्डारों में एकत्र करता है
8) समस्त पृथ्वी प्रभु का आदर करे, उसके सभी निवासी उस पर श्रद्धा रखें।
9) उसके मुख से शब्द निकलते ही यह सब बना है, उसके आदेश देते ही यह अस्तित्व में आया है।
10) प्रभु राष्ट्रों की योजनाएं व्यर्थ करता और उसके उद्देश्य पूरे नहीं होने देता है;
11) किन्तु उसकी अपनी योजनाएं चिरस्थायी हैं, उनके अपने उद्देश्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी बने रहते हैं।
12) धन्य है वह राष्ट्र, जिसका ईश्वर प्रभु है, जिसे प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है!
13) प्रभु आकाश के ऊपर से देखता और समस्त मानवजाति पर दृष्टि दौड़ाता है।
14) वह अपने सिंहासन पर से पृथ्वी के सब निवासियों का निरीक्षण करता है।
15) उसी ने सबों का हृदय गढ़ा है; वह उनके सब कार्यों का लेखा रखता है।
16) राजा की सुरक्षा विशाल सेना से नहीं होती, शूरवीर अपने बाहुबल से अपनी रक्षा नहीं कर सकता।
17) युद्धाश्व द्वारा विजय की आशा व्यर्थ है-वह कितना ही बलवान् क्यों न हो, बचाने में असमर्थ है।
18) प्रभु की दृष्टि अपने भक्तों पर बनी रहती है, उन पर, जो उसकी कृपा से यह आशा करते हैं
19) कि वह उन्हें मृत्यु से बचायेगा और अकाल के समय उनका पोषण करेगा।
20) हम प्रभु की राह देखते रहते हैं, वही हमारा सहायक और रक्षक है।
21) हम उसकी सेवा करते हुए आनन्दित हैं, हमें उसके पवित्र नाम का भरोसा है।
22) प्रभु! तेरी कृपा हम पर बनी रहे, जैसी हम तुझ से आशा करते हैं।